डर

Sun 21 September 2014 | -- (permalink)

डर लगता है मुझे, जानेमन
डरपोक नही, पर इंसान तो हूँ
समझाता हूँ खुद को कि ना डरूँ
पर रहा नासमझ, डर का क्या करूँ

यह कैसा नशा है तेरा ?
मैं, जो मन की चाल पे दुनिया को अपना कहदूँ
तुझे दुनिया से अलग देखता-देखते ही
पाता हूँ हवा का कोइ गैरज़िम्मेदार झोंका
मेरी समझ उड़ा ले गया
नासमझ फिर, डरता हूँ

मेरे डरों से चिढ न जाना, जान
मैं सचमुच डरपोक नही, न तू डरावनी
बस खूबसूरत है बेहद, और मै नादान
तेरी खूबसूरती के नशे में, डरता हूँ

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